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नई दिल्ली। दूसरे देशों में व्यस्त जिंदगी और तमाम तरह की आपाधापी से भरी दिनचर्या के बीच बहुत कम लोगों के पास फुर्सत से खाना बनाने और खाने का वक्त होता है। शहरों में ज्यादातर लोग इंस्टेंट एवं प्रोसेस्ड यानि रेडी टू ईट पैक्ड फूड को विकल्प के रूप में चुनते हैं। पहले खानपान की ऐसी आदतें सिर्फ वेस्टर्न देशों तक ही सीमित थीं,पर आज भारत जैसे देश में भी बड़े पैमाने पर यह प्रचलन आम होता जा रहा है। इसी बदलाव का नतीजा है कि वैश्विक स्तर पर प्रोसेस्ड फूड इंडस्ट्री का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में भारत में भी खाद्य प्रसंस्करण कम्पनियों के लिए अपार संभावनाएं हैं। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के विभिन्न उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है। इसी के मद्देनजर खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय देश में फूड प्रोसेसिंग को बढ़ावा देने के लिए तमाम योजनाएं चला रही है। इसका असर भी दिखने लगा है। प्रोसेसिंग के जरिए न केवल खेती बाड़ी को इंडस्ट्री के साथ जोड़ा जा रहा है,बल्कि इसके निर्यात के द्वार खोलने पर आमदनी और रोजगार में भी बढ़ोतरी हो रही है।

दरअसल, हमारे देश के अन्नदाता फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए जी तोड़ मेहनत करते हैं। ऐसे में उनकी मेहनत के बदले होने वाली आमदनी को दोगुना करने के लिए केंद्र सरकार कई मोर्चों पर काम कर रही है। यानि उनकी फसलों का उचित दाम दिलाना, सड़ने या खराब होने से बचाना,इसके अलावा उन उत्पादों के लिए बाजार मुहैया कराना। इन सब के बीच अब खाद्य प्रसंस्करण यानि फूड प्रोसेसिंग के जरिए उनके उत्पाद को नए कलेवर में बाजार तक पहुंचाने की दिशा में तेजी से काम हो रहा है। खास बात ये है कि फूड प्रोसेसिंग एक बड़े कारोबारी संभावना के तौर पर उभरी है।

किसान को सबसे ज्यादा अपनी फसल के खराब होने से घाटा होता रहा है। फूड प्रोसेसिंग की योजनाओं के लिए किसान की जो जल्दी खराब होने वाले सामान जैसे सब्जी, फल, दूध हैं, उनकी सप्लाई चेन बढ़ाने पर ध्यान दिया गया है।ऐसे में उन्हें ट्रेनिंग देने का प्रावधान है, जिससे अपने उत्पाद को वो लंबे समय तक सुरक्षित रख सके। मंत्रालय का मुख्य फोकस है कि जहां का उत्पाद है, वहीं से प्रोसेस, पैकिंग करके दूसरी जगह निर्यात किया जाए। इसके लिए छोटे-छोटे यूनिट और इंडस्ट्री लगाने के साथ ही निवेश के लिए तमाम प्रावधान किए जा गए हैं। इसके अलावा फूड प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना के लिए प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना के तहत 3 मई 2017 को खाद्य प्रसंस्‍करण एवं परिरक्षण क्षमता विस्तार योजना को अनुमोदित किया गया था। इस योजना का मुख्य उद्देश्य प्रसंस्‍करण एवं संरक्षण क्षमताओं का निर्माण और मौजूदा फूड प्रोसेसिंग यूनिटों का आधुनिकीकरण और विस्‍तार करना है,जिससे प्रसंस्‍करण के स्‍तर में वृद्धि होगी, मूल्यवर्धन होगा तथा अनाज की बर्बादी में कमी आएगी। इसके साथ ही उत्पाद के मार्केटिंग और ब्रांडिग के लिए एफपीओ,ट्राइफेड, आईसीएआर,एनएसएफडीसी, नेफेड और एनसीडीसी आदि सहयोग कर रहे हैं। यहां लोकल प्रोड्यूसर्स की मदद से ही प्रोसेस करके निर्यात करने पर फोकस है।

रोजगार के कैसे बढ़ेंगे अवसर

मंत्रालय की योजनाएं स्थानीय उत्पाद को उसी क्षेत्र में प्रोसेस करके आगे भेजने की है। हम ऐसे समझ सकते हैं कि पंजाब में मक्के की काफी खेती होती है। पंजाब में ही मक्का प्रोसेसिंग की यूनिट लगाई गई हैं। इससे सबसे पहले किसानों के मक्के को बाजार मिला। उसके बाद इलाके के युवाओं को यूनिट में रोजगार भी मिल रहा है। इसी तरह देश के अन्य क्षेत्र में अगर कहीं मखाना ज्यादा होता है तो, वहां से मखाना को प्रोसेस करके दूसरी जगह निर्यात किया जाएगा। ग्रामीण और रूरल इलाकों में फूड प्रोसेस की यूनिट या कोई यूनिट लगने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा। साथ ही लोगों को दूसरे राज्य में रोजगार के लिए नहीं जाना पड़ेगा। यानि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं।
इस बारे में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के सचिव मनोज जोशी बताते हैं कि भारत में लार्ज फूड इंडस्ट्री में ज्यादा प्रोडक्शन होता है, लेकिन वहां रोजगार काफी कम होता है। जबकि सूक्ष्म खाद्य उद्योग में प्रोडक्शन भले ही कम हो लेकिन रोजगार कई गुना ज्यादा होते हैं। देश में 25 लाख के करीब मिनी फूड इंडस्ट्री है। इसलिए लोकल लेवल रोजगार बढ़ाने में इनका बहुत योगदान है। इसलिए इन उद्योगों के उत्पाद के सेल,डिस्ट्रीब्यूशन आदि पर ध्यान दिया जा रहा है। उन्हें सब्सिडी दी जा रही है, ट्रेनिंग दी जा रही है। महिलाएं जो स्वयं सहायता समूह में काम कर रही हैं, उनके लिए लोन,सब्सिडी का प्रावधान,ट्रेनिंग आदि कराए जा रहे हैं।

भारत में प्रोसेस्ड फूड निर्यात बढ़ाने के लिए पीएलआईएस यानि प्रोडक्शन लिंक इंसेंटिव स्कीम हाल ही में लॉन्च हुई है। इसके अंतर्गत कंपनियों को अपने ब्रांड को देश से बाहर प्रमोट करने के लिए खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय 50 प्रतिशत सब्सिडी देगा। इसके लिए आवेदन मांगे गए हैं। ताकि हमारे देश में बना भारतीय ब्रांड ही विदेश में बेचा जाए। अभी बाहर की ही कंपनियां इंडियन फूड बना कर अपने ब्रांड के नाम से बेचती है। इस पहल से हमारे यहां न सिर्फ निर्यात बढ़ेगा बल्कि अवसर भी खुलेंगे। आज देश में 707 वन डिस्टिक वन प्रोडक्ट चलाया जा रहा है। इन जिलों के प्रोडक्ट को भी ब्रांडिग मार्केटिंग पर फोकस किया जा रहा है। प्रधान मंत्री किसान संपदा योजना के तहत भी कई तरह के प्रसंस्करण योजनाएं चलाई जा रही हैं।

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल बताते हैं कि देश में फल, सब्जी या समुद्री उत्पाद जहां अधिकता में पैदा होते हैं और वहां मांग कम या कहीं मांग ज्यादा और उत्पाद कम है उस गैप को पूरा करने का काम मंत्रालय करता है। इसके अलावा ये भी देखते हैं कि अगर देश में मांग नहीं है या बहुतायत है तो उसे प्रोसेस करके सड़ने-गलने से भी बचा सकते हैं या नहीं। इससे देश के किसान, उद्योग, लोगों सभी को फायदा होगा।
इन उत्पादों के लिए कोल्ड चेन और ट्रांसपोटेशन सबसे ज्यादा जरूरी है। किसान रेल का इसमें काफी सहयोग रहा। किसानों का उत्पाद अब उस शहर या राज्य से ब्रांड बन कर पैक होकर दूसरे राज्य जाता है। उन्होंने बताया कि किसान रेल में सामान खराब भी नहीं होते और दूसरे राज्य में पहुंच भी जाते हैं। इससे उत्पाद की मार्केटिंग भी होती है और मांग बढ़ती है। जिससे किसान की आय बढ़ती है। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि अगर कहीं कोई चीज बल्क में पैदा हो रही है और ब्रांड है,तो उसे दूसरे राज्य में भेजने के लिए आधा खर्चा फूड प्रोसेसिंग मंत्रालय देता है।

भारत का खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र दुनिया में सबसे बड़ा है और इसका उत्पादन 2025-26 तक 535 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। भारत की फूड प्रोसेसिंग के लगभग 39,748 रजिस्टर्ड इकाइयों में लगभग 1.93 मिलियन लोग जुड़े हुए हैं। भारत में फूड प्रोसेसिंग उद्योग के अंतर्गत प्रमुख क्षेत्र अनाज,चीनी, खाद्य तेल, पेय पदार्थ और डेयरी उत्पाद हैं। सरकार की ओर से 41 मेगा फूड पार्क, 353 कोल्ड चेन परियोजनाएं, 63 कृषि-प्रसंस्करण क्लस्टर, 292 खाद्य प्रसंस्करण इकाइयां, 63 बैकवर्ड और फॉरवर्ड लिंकेज परियोजना और 6 ऑपरेशन ग्रीन परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है।

क्या है फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज

फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री काफी बड़ा क्षेत्र है। इसमें खाद्य सामग्री और पेय पदार्थों को प्रोसेस करके रखा जाता है। फूड प्रोसेसिंग एक तरह की टेक्नोलॉजी है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का अर्थ ऐसी गतिविधियों से है, जिसमें प्राथमिक कृषि उत्पादों का प्रसंस्करण कर उनका मूल्यवर्धन किया जाता है। भारत में लोगों की तेजी से बदलती लाइफ स्टाइल ने खाद्य प्रसंस्कृत उत्पादों की मांग में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। ऐसे में कारोबारी इस क्षेत्र में निवेश कर नया मुकाम बना सकते हैं,जिसके लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय कई सारी योजनाएं चला रहा है। इसके तहत नई इकाई लगाने, मौजूदा इकाई का आधुनिकीकरण करने,तकनीकी सहायता आदि के लिए सहायता मिल रही है। भारत के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग क्षेत्र में प्रसंस्कृत खाद्य के उत्पादन और निर्यात की पर्याप्त संभावनाएं हैं।

फूड प्रोसेसिंग और स्टार्टअप के लिए सरकार की ओर से उठाए गए कदम

>देश के कुल फूड मार्केट में प्रोसेस्ड फूड की हिस्सेदारी 32 फीसदी है।

>भारत में कुल खाद्य उत्पादन का 10 फीसदी ही प्रोसेस किया जाता है।

>भारत के कुल निर्यात में प्रोसेस्ड फूड की हिस्सेदारी 13 फीसदी है।

>फूड प्रोसेसिंग को बढ़ावा देने के लिए पीएम किसान संपदा योजना के तहत देश में मेगा फूड पार्क बनाने की योजना जारी है।

>सरकार इसके तहत 50 से 75 फीसदी तक का वित्तीय अनुदान देगी।

>2025-26 तक भारत के फूड प्रोसेसिंग बाजार को 535 बिलियन डॉलर होने की उम्मीद है।

>भारत में प्रोडक्शन लिंक इंसेंटिव योजना यनि पीएलआई स्कीम में फूड प्रोसेसिंग के लिए भी 10,900 करोड़ का प्रावधान किया गया है।

>वैल्यू एडिशन और एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने के लिए ऑपरेशन ग्रीन का दायरा बढ़ा दिया गया है।

>ऑपरेशन ग्रीन में टमाटर, आलू और प्याज के अलावा 22 और फसलों को शामिल किया गया है।

>किसानों की मदद करने के लिए माइक्रो फूड प्रोसेसिंग के लिए 10,000 करोड़ की व्यवस्था अलग से की जा रही है।

>फूड प्रोसेसिंग सेक्टर में विदेशी तकनीक और निवेश को बढ़ावा देने के लिए ऑटोमेटिक रूट से 100 फीसदी एफडीआई को मंजूरी दी गई है।

>2019-20 में फूड प्रोसेसिंग सेक्टर में 905 बिलियन डॉलर का एफडीआई आया।

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