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फिरोजाबाद। श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर जैन नगर खेड़ा में क्षमावाणी पर्व पर आचार्यश्री विवेक सागर मुनिश्री ने जिनभक्तो को सम्बोधित करते हुए कहा कि मन से वचन से और काय से मांगी गई क्षमा क्षमा होती है।
मुनिश्री ने कहा उत्तम क्षमा अपने अंतरंग में धारण करने की वस्तु है। क्षमा धर्म है और क्षमा ही धन है और जिसके अंदर ये दोनों विद्यमान हो जाते हैं उनका जीवन श्रेष्ठ हो जाता है। आज के समय में किसी से क्षमा मांगना इतना सरल नहीं है। परन्तु यदि कोई कोई क्षमा मांग भी लेता है तो सामने वाला उसे क्षमा नहीं करता है। क्योंकि क्षमा मांगना जितना सरल नहीं है उससे भी ज्यादा क्षमा करना सरल नहीं है। मुनिश्री ने कहा कि जब तक हमारे अंतरंग में क्रोध, मान, माया और लोभ भरा हुआ है, तब तक न ही क्षमा मांगना सरल है और न ही क्षमा करना सरल है। मुनिश्री ने कहा कि क्षमा वीरस्य भूषणम् अर्थात क्षमा वीरों का आभूषण है। चारों कशायों को त्याग कर उत्तम क्षमा धारण करने वाला ही वीर अर्थात महावीर बनता है।

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