अपनी आत्मा के अस्तित्व का बोध हो जाना ही आस्विकता है और वही स्वास्तिक-अमित सागर
फिरोजाबाद। गुरुवार को नसिया मंदिर में प्रात सर्वप्रथम अनेकों पुजारियों द्वारा पूरे भक्तिभाव के साथ श्रीजी का अभिषेक किया गया। तत्पश्चात शांतिधारा के पवित्र मंत्रों से पूरा मंदिर गुंजायमान हो उठा।
मुनि अमित सागर महाराज ने विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा की हम अपनी आत्मा से छल कर रहे है। मोहरूपी आश्रव कर्म को दूर करने के लिए पहले दर्शनावर्णी कर्म को क्षय करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि सही दान वह होता है जो पात्र के लिए आग्रहपूर्वक नवदा भक्ति से दिया गया हो। जो पंचरत्न के त्यागी है वही दान के पात्र होते है। जिनका कोई अस्तित्व ही नहीं है उन्हें भय बना हुआ है और जिनका प्रत्यक्ष अस्तित्व है उनकी ना आस्था है और ना ही भय। अपनी आत्मा के अस्तित्व का बोध हो जाना ही आस्विकता है और वही स्वास्तिक है। प्रवचन में वर्षायोग समिति के सभी पदाधिकारियों सहित हजारों श्रद्धालुगण शामिल रहे।

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