फिरोजाबाद। वैज्ञानिक संत आचार्य निर्भय सागर महाराज का मंगल प्रवचन विभव नगर में हुआ एवं आहार चर्या भी विभव नगर में संपन्न हुई। प्रातः काल शांतिनाथ भगवान की प्रतिमा के ऊपर शांति धारा करने का सौभाग्य नरेंद्र प्रकाश, मुकेश कुमार, आशीष कुमार, राजेश कुमार, श्याम लाल को प्राप्त हुआ।
आचार्य श्री ने मंगल उपदेश देते हुए कहा श्रद्धा पागलों में नहीं होती श्रद्धा ज्ञानी विवेकी विद्वान में होती है जो शरीर से अनु रंजीत होकर रहते हैं शरीर को ही आत्मा मान बैठे हैं वह अज्ञानी हैं। वह मरने और मारने को हमेशा तैयार रहते हैं। लेकिन जो अपनी आत्मा को शरीर से भिन्न मानते हैं और पाप से डरते हैं वह ज्ञानी पुरुष कहलाते हैं। पैसो के पीछे पड़े रहने वाला व्यक्ति परमात्मा को भूल जाता है और विषयों में लिप्त तो हो जाता है आचार्य श्री ने कहा आत्मा की संरचना परमाणु की तरह है आत्मा में ज्ञान और दर्शन परमाणु में पाये जाने वाले न्यूट्रॉन और प्रोटॉन की तरह सदा बना रहता है और राग द्वेष में इत्यादि भाव रूपी इलेक्ट्रॉन चारों ओर चक्कर लगाता रहता है जब व्यक्ति राग द्वेष मोहे छोड़ देता है तब वह वीतरागी बन जाता है वीतराग अवस्था में कर्म का बंध रुक जाता है आत्मा ही .परमात्मा बन जाती है।