इस सीट पर कुल वोटरों की संख्या तीन लाख 71 हजार 974 है. राजनीति समीकरण की बात करें तो वैसे तो इस सीट पर किसी एक दल का कब्जा नहीं रहा. बीते दो दशकों में यहां सपा, बसपा और बीजेपी तीनों की पार्टियों के प्रत्याशी जीते.
फिरोजाबाद : फिरोजाबाद की टुंडला विधानसभा सीट काफी संवेदनशील माना जाती है. यहां लंबे समय तक किसी भी एक पार्टी का दबदबा नहीं रह पाया है. एक-दो चुनावों के बाद कोई न कोई दूसरी विचारधारा या दल यहां काबिज हो जाता है. ईटीवी भारत द्वारा आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर इस विधानसभा की डेमोग्राफी जानने की कोशिश की गई।
फिरोजाबाद जिले के टूंडला विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है. इस विधानसभा क्षेत्र पर फिलहाल भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है. प्रेम पाल धनकर इस सीट पर मौजूदा विधायक हैं. इन्होंने साल 2020 में हुए उप चुनाव में समाजवादी पार्टी के महाराज सिंह धनगर को हराकर जीत का परचम लहराया था. इससे पहले विधानसभा के जो आम चुनाव हुए थे साल 2017 में केंद्र सरकार राज्यमंत्री विधि और न्याय, एसपी सिंह बघेल यहां से जीतकर विधायक बने थे. यूपी सरकार में पशुपालन मंत्री भी रहे.इस सीट पर कुल वोटरों की संख्या तीन लाख 71 हजार 974 है. राजनीति समीकरण की बात करें तो वैसे तो इस सीट पर किसी एक दल का कब्जा नहीं रहा. बीते दो दशकों में यहां सपा, बसपा और बीजेपी तीनों की पार्टियों के प्रत्याशी जीते. साल 2002 में इस सीट पर हुए चुनाव में जहां सपा के मोहनदेव शंखबार चुनाव जीतकर विधायक बने तो वहीं साल 2007, 2012 में बसपा के राकेश बाबू चुनाव जीते. साल 2017 में बीजेपी ने यह सीट बसपा से छीनी और एसपी सिंह बघेल यहां से जीते और मंत्री भी बने लेकिन एसपी सिंह बघेल आगरा से सांसद चुन गए.इसकी वजह से यह सीट खाली हो गयी. साल 2020 में यहां उप चुनाव हुआ और बीजेपी ने यहां अपना कब्जा बरकरार रखा. बीजेपी नेता प्रेमपाल धनगर यहां से चुनाव जीतकर विधायक बने. प्रेमपाल धनगर ने 72 हजार 84 वोट पाकर सपा के महाराज सिंह धनगर को 17 हजार 216 वोटों से हराया था. उन्हें 54 हजार 868 वोट मिले थे जबकि बीएसपी के संजीव चक को 40 हजार 635 वोट मिले थे।
टूंडला विधानसभा की जनता ने ज्यादातर राजनीतिक दलों के नेताओं को विधायक चुनकर सेवा का मौका दिया लेकिन वह जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सके है. इस इलाके में ऐसी कई समस्याएं हैं जिन्हें विधायक भी हल नहीं करा सके।
टुंडला विधानसभा सीट पर एक नजर
3,71,974: मतदाता
2,01,475: पुरुष मतदाता
1,70,499: महिला मतदाता
सबसे बड़ी समस्या यहां पर खारे पानी की है जो कई दशकों से है लेकिन वह समस्या अभी भी जस की तस बनी हुई है. इस इलाके के करीब 40 से 50 गांव ऐसे हैं जहां का पानी इस कदर खारा और फ्लोराइड युक्त है. इसे पीने के बाद लोग बीमार पड़ जाते हैं. खारे पानी की समस्या चुनाव में मुद्दा भी बनती है लेकिन आज तक उसका कोई हल नहीं हुआ.
कुछ गांव में पानी की टंकियां जरूर बनवाई गईं लेकिन उनकी मरम्मत न होने से समस्या जस की तस बनी हुई है. इस इलाके में सिंचाई की भी समस्या है. खारे पानी से जहां फसलें खराब हो जाती है वही इस इलाके में भूगर्भ जल स्तर इस कदर गिर गया है कि यह पूरा इलाका डार्क एरिया घोषित हो गया है.
डार्क एरिया का मतलब यह होता है कि यहां पर कोई नया ट्यूबवेल नहीं लगाया जा सकता है. इसके अलावा यहां जो बंबा, रजवाह और नहरें हैं, वह सब सूखे पड़े हैं. हाथरस माइनर में तो बीते दो दशक से पानी नहीं है. यह माइनर भी चुनाव के दौरान मुद्दा बनता है लेकिन पानी आज तक नहीं आया. कभी-कभी किसान जब आंदोलन करते हैं तो कुछ समय के लिए इस माइनर के थोड़े से हिस्से में पानी छोड़ दिया जाता है. बाद में वह भी बंद हो जाता है.
अब तक यह विधायक चुने गए | ||
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प्रत्याशी | पार्टी | सन |
राम चन्द्र सेहरा | नेशनल कांग्रेस | 1952 |
गंगाधर | नेशनल कांग्रेस | 1957 |
रामचंद्र सेहरा | नेशनल कांग्रेस | 1962 |
मुल्तान सिंह | सोशलिस्ट पार्टी | 1967 |
मुल्तान सिंह | भारतीय क्रांति दल | 1969 |
रामजी लाल केन | नेशनल कांग्रेस | 1974 |
राजेश कुमार सिंह | जनता पार्टी | 1977 |
गुलाब सेहरा | नेशनल कांग्रेस | 1980 |
अशोक सेहरा | नेशनल कांग्रेस | 1985 |
ओम प्रकाश दिवाकर | जनता दल | 1989 |
ओम प्रकाश दिवाकर | जनता दल | 1991 |
रमेश चंद्र चंचल | सपा | 1993 |
शिव सिंह चक | भाजपा | 1996 |
मोहनदेव शंखवार | बीजेपी | 2002 |
राकेश बाबू | बीएसपी | 2007 |
राकेश बाबू | बीएसपी | 2012 |
एसपी सिंह बघेल | बीजेपी | 2017 |
प्रेमपाल धनगर | बीजेपी | 2020 |
यह है जातीय समीकरण | |
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ठाकुर | 50 हजार |
बघेल/घनगर | 50 हजार |
जाटव | 45 हजार |
जाट | 15 हजार |
निषाद | 20 हजार |
मुस्लिम | 20 हजार |
ब्राह्मण | 15 हजार |
शंखवार | 10 हजार |
कुशवाहा | 16 हजार |