फिरोजाबाद। दशलक्षण धर्म के चैथे दिन सोमवार को जैनाचार्य श्रीसुरत्न सागर ने श्रीमहावीर जिनालय में बने विशाल पंडाल में धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि आज का उत्तम शौच धर्म हमें पवित्र और स्वच्छ होने का उपदेश देता है। हमारे अंतरंग में पड़ी जो लोभ कषाय जिसके कारण हम लालसा और लालच में जीते हैं वह हमें धर्म से विमुख करती जाती है।
मुनिश्री ने कहा कि व्यापार में जैसे-जैसे हमें लाभ होता है, वैसे-वैसे हमारी लोभ की प्रवर्ती बढ़ती जाती है। धन का लोभ पुत्र और परिवाद वाद की लालसा हमारे अंतरंग में क्रोध, मान अर्थात अहंकार आदि अष्ट क्रमों की प्रवर्ती को बढ़ा देती है। आज जन मानस केवल एक लोभ के वशीभूत होकर दौड़े जा रहा है। फिर भी अंत में उसको कुछ नहीं मिल पाता और खाली हाथ चला जाता है।
मुनिश्री ने कहा कि ध्यान रखना जिसके अंतरंग में लोभ बसा हुआ है वह जीव भौतिक सुख और आध्यात्मिक सुख को प्राप्त नहीं कर सकता है। वह अपनी उम्र धन अर्जित करने में ही गुजार देता है। वह जीव जिसके अंदर लोभ की प्रवर्ती नहीं होती संतोष धारण करके जीवन जीता है अर्थात उसे जीवन में जितना मिला उसी में परमात्मा का शुक्रिया अदा करता है। वही जीव वास्तविक सुख को प्राप्त करता है। भव्य जीवो आपके पास जितना हैं उसी में संतोष कर धर्म को धारण करो जिससे आपके अंत समय में कम से कम धर्म तो साथ जाएं। श्रीमहावीर जिनालय में परम पूज्य आचार्य श्री सुरत्न सागर मुनिश्री के पावन सानिध्य में प्रातः काल श्रीजी के जिनाभिषेक के पश्चात् शांति धारा संपन्न हुई। जिसका सौभाग्य पूर्णिया बिहार से पधारे महावीर प्रसाद जैन परिवार को मिला। पर्युषण पर्व के सामूहिक पूजन में अनेकों जिनभक्तो के साथ अनेकों धार्मिक संस्थाओं श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ संगठन, महावीर संगठन, अर्हम ग्रुप, महामृत्युंजय ग्रुप, अर्हम महिला मण्डल, धर्म जागृति संस्थान, विमर्श ग्रुप आदि के पदाधिकारी एवं सदस्यों ने धर्म लाभ लिया।