गोंदिया – भारत आदि जुगादि क़ाल से ही आध्यात्मिक, सभ्य व महापुरुषों का स्थान, सकारात्मकता शांतिपूर्ण आंदोलन के लिए विश्व विख्यात है।…साथियों बात अगर हम भारत के इतिहास की करें तो अखंड भारत पर जब अंग्रेजों का शासन था, उसी समय से हमारे महापुरुषों द्वारा हमारे पूर्वजों को शांति, सत्य अहिंसा और सकारात्मकता से शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का पाठ पढ़ाया था। कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो उसके आधार पर हमारे भारत को आज़ादी मिली और सत्यता, अहिंसा की विजय हुई और आज भारत विश्व का सबसे बड़ा और मजबूत लोकतंत्र है।…साथियों बात अगर हम लोकतंत्र और जन आंदोलन, विरोध प्रदर्शन की करें तो लोकतंत्र का सबसे बड़ा हथियार है जन आंदोलन और विरोध प्रदर्शन। आंदोलन व विरोध प्रदर्शन जाति, धर्म, लिंग, राजनीति से परे सटीक स्वास्थ्य सकारात्मक मुद्दों पर शांतिपूर्ण ढंग से करना भारत की परंपरा रही है।…साथियों बात अगर हम वर्तमान परिवेश की करें तो, हाल के कुछ वर्षों में जिस तरह के विरोध प्रदर्शन और जन आंदोलन हो रहे हैं उनमें और आंदोलनों के हमारे गौरव पूर्ण इतिहास में कुछ भिन्नता नजर आती है। आज के युग में किसी आंदोलन या विरोध प्रदर्शन में उससे संबंधित हस्ती, मंत्री, राजनीतिज्ञ, या व्यक्ति बड़ी हस्तियों को जूते चप्पलें दिखाना, जूते चप्पल उठाकर उनकी तरफ देखना या उछालना, शर्ट उतार कर नारे लगाना,बीच चौराहों पर टायर जलाना, स्याही फेंकना, कालिख पोतना, अवैध भीड़ इकट्ठा कर कानूनों का उल्लंघन कर शासन प्रशासन को सख्त कार्रवाई के लिए मजबूर करना, राजनीतिक, धार्मिक, जातिवादी, लिंगभेदी रंग देना इत्यादि अनेक तरीके अब विरोध प्रदर्शन और जनआंदोलनों में देखने को मिलते हैं।…साथियों बात अगर हम दिनांक 22 जुलाई 2021 को भारतीय लोकसभा के मंदिर जिसमें पीएम ने भी अपना मत्था जमीन पर टेककर प्रवेश किया था की करें तो आईटी मंत्री द्वारा पेगासस पर सरकार की सफाई का लिखित बयान पढ़ रहे थे तो एक सांसद ने विरोध प्रदर्शन में उनसे कॉपी छीनकर उसको फाड़कर टुकड़े-टुकड़े कर उप सभापति के ऊपर फेंक दिया। यह हम सभ ने टीवी चैनल पर लाइव कार्रवाई में देखें और फिर संसद स्थगित कर दी गई। हालांकि इस जैसे कुछ मामले पहले भी हमने संसद की लाइव कार्रवाई में देख चुके हैं जिसे हम किसी भी तरह से उचित नहीं कह सकत।… साथियों बात अगर हम वर्तमान किसान आंदोलन की करें तो 26 जनवरी 2021 को भारत की धरोहर लालकिलेपर हुई तोड़फोड़ दिल्ली के अनेक बॉर्डरों पर रास्ते जाम, सड़कों पर अतिक्रमण, दिनांक 22 जुलाई रात्रि एक टीवी चैनल पर दिखाया गया के सिंधु बॉर्डर पर 30 गांवके लोगों ने मिलकर बॉर्डर पर हो रहेआंदोलन के विरोध में जन आंदोलन निकाला और कहा वहां आने-जाने के रास्ते पर तकलीफ है जो हमारे मौलिक अधिकारों का हनन है और दिनांक 22 जुलाई से 13 अगस्त तक जंतरमंतर पर 200 किसानों की संसद सभा आंदोलन का आयोजन है जिसके लिए 200, सुरक्षाकर्मी तैनात हैं। उम्मीद है शांतिपूर्ण व्यवस्था बनी रहेगी…। साथियों बात अगर हम हालमें हुए सीएए आंदोलन विरोध प्रदर्शन की करें तो टीवी चैनलों के माध्यम से हमसभ ने देखे के किस तरह आम जनताके लिए रोड रास्तों, चौराहों पर परेशानी का कारण बन गया था। हम उस आंदोलन के कारण की तह में नहीं जाना चाहते परंतु जिस प्रकार की ग्राउंड रिपोर्टिंग टीवी चैनलों पर हमने देखे उसमें आम जनता को भारी दिक्कतें जा रही थी ऐसा हम जनता ने महसूस किया…। साथियों बात अगर हम शासन -प्रशासन की करें तो,सरकारों को सावधान हो जाना चाहिए और एक बार उन्हें अपनी नीतियों की पुनर्समीक्षा करनी चाहिए कि कहीं उन्होंने आमजन के खिलाफ कोई कानून तो नहीं बना दिया या किसी नीतिगत फैसले या योजना से जनता को कोई परेशानी तो नहीं गई यदि उचित लगे तो इस पर विश्लेषण कर रणनीतिक रोड मैप बनाना सकारात्मक कदम होगा…। साथियों देश के इतिहास में जन आंदोलनों का बड़ा महत्व रहा है। चाहे वह आज़ादी के लिए भारत छोड़ो आंदोलन हो, चाहे असहयोग आंदोलन। इन आंदोलनों में देश के नागरिकों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और अंग्रेजों को आईना दिखाया।परिणाम यह हुआ कि देश को आज़ादी मिल गई। जब-जब देश में दमनकारी नीति, नियम या कानून बनाया गया, देश की जनता सड़कों पर आई। जन आंदोलन बदलाव की वह तीव्र शक्ति होती है, जिसको नजर अंदाज करना किसी भी सरकार के लिए आसान नहीं होता। परंतु हमारी जिम्मेदारी है कि शांतिपूर्वक हों जन आंदोलन। लोकतंत्र में जन प्रतिनिधि शासन संचालन के लिए कई नियमकानून बनाते हं। जब आम जनता को लगता है कि ये नियम या कानून नुकसानदायक हैं, तो आम जनता आंदोलन का रास्ता अपनाती है। सही नीयत ओर शांति से किया गया जन आंदोलन जनता को जागरूक करता है। जनता की आवाज़ सरकार तक पहुंचती हैै, जिससे सरकार नियम कानूनों में संशोधन करने पर मजबूर होती है। लोकतंत्र में जन आंदोलन अंहिसात्मक और शांतिपूर्वक होने चाहिए, ताकि किसी को कोई परेशानी ना हो। भारत देश शांतिपूर्ण आंदोलन के लिए विश्व विख्यात है। देश के कई महापुरुषों ने शांतिपूर्ण आंदोलन को जरिया बनाकर भारत की आज़ादी में मुख्य योगदान दिया। अगर लोगों का शांतिपूर्ण आंदोलन से विश्वास उठ गया तो कोई भी लोकतंत्र के मूल्यों पर विश्वास नहीं करेगा। इसलिए लोग अपने डायलॉग के द्वारा समस्याओं को सुलझाना, प्रोटोकॉल, कानून, कायदों, नियमों आदेशों का पालन करनाआंदोलन व विरोध प्रदर्शन की आधारभूत ढांचागत जरूरत है। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो, हम देखेंगे कि लोकतंत्र में आंदोलन, विरोध प्रदर्शन करने का तरीका स्वास्थ्य और सकारात्मक होना जरूरी है। लोकतंत्र में विरोध की आज़ादी के साथ जिम्मेदारी भी जरूरी है। आंदोलन विरोध प्रदर्शन जाति, धर्म, लिंग, राजनीति से परे सटीक स्वस्थ सकारात्मक मुद्दों पर शांतिपूर्ण ढंग से करना भारत की परंपरा को कायम रखना है।