शहरों में अंतिम संस्कार के लिए लगी कतारों के बीच गांवों के हालात भी अब बेहद खराब हो चुके हैं। ग्राउंड रियलिटी जानने के लिए हम उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के 13 गांवों में पहुंचे। हर गांव में 1 से 7 हजार तक की आबादी है। इन सभी गांवों में पिछले एक-डेढ़ महीने से मौतें अचानक बढ़ गई हैं। मरने वाले सभी खांसी-बुखार से पीड़ित थे। क्या इन्हें कोरोना था? टेस्ट ही नहीं हुए तो कैसे पता चले।

क्या कोई दवा ली? कैसे लेते- सरकारी ओपीडी बंद है, निजी अस्पतालों में गरीब जा नहीं पाते, सिर्फ झोलाछाप के भरोसे हैं। आप हालात का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि इस बार यहां पंचायत चुनावों में उम्मीदवारों ने शराब से ज्यादा दवाएं बांटी हैं। आपको यह जानकार भी हैरानी होगी कि ललितपुर जिले के पीरघाट, बालाबेहट, बरोदिया, बमनोरा, कपूरिया, सलैया, दूधई, शहपुरा, गिरेनी, बजरंगगढ़, ऐरावनी, बछलापुर और बिरधा गांव के हर घर में खांसी-बुुखार हो चुका है।

हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर और सरकार की तैयारी देखिए
ललितपुर जिले के अस्पतालों में 1 महीने से ओपीडी बंद हैं। इसका मतलब यह हुआ है कि जब तक गांव का व्यक्ति जिला मुख्यालय के कोविड सेंटर नहीं आएगा, तब तक सरकारी आंकड़ों में न तो वह बीमार माना जाएगा, न ही कोरोना पॉजिटिव। 60 किमी से पहले न तो कोई सरकारी काेविड सेंटर है, न कहीं टेस्ट होते हैं। झोलाछाप डॉक्टरों ने खांसी-जुकाम-बुखार को मलेरिया और टाइफाइड मान रखा है। उसी हिसाब से वे दवाएं दे रहे हैं और लोग ले भी रहे हैं।

यहां आजकल केमिस्ट भी डॉक्टर हैं। ललितपुर के डीएम ए दिनेश कुमार भी मानते हैं कि ओपीडी बंद होने से लोग परेशान हैं। कहते हैं कि इस समस्या के बारे में सरकार को लगातार बता रहे हैं। टेस्टिंग बंद होने के सवाल पर कहते हैं कि झांसी से टेस्ट रिपोर्ट बहुत देरी से आती है। हम इस बारे में भी लगातार स्वास्थ्य विभाग को लिख रहे हैं।

मौतों का कारण लोग क्या मानते हैं?
इसका जवाब उत्तर प्रदेश-मध्य प्रदेश की सीमा पर बसे गांव पीरघाट का हाल देखकर मिल जाएगा। यहां तीन बुजुर्ग पेड़ के नीचे बैठे बातें करते मिलते हैं। बमनोरा के 78 साल के दरयाब सिंह, गिरेनी के सुखलाल और बरोदिया के कालूराम। हमने इनसे पूछा कि आप लोगों ने मास्क क्यों नहीं लगा रखे हैं, कोरोना से डर नहीं लगता क्या? जवाब मिला- गांवों में कोरोना नहीं है। यहां तो आजकल मलेरिया, टाइफाइड, बुखार, सर्दी, खांसी, जुकाम जैसी बीमारियां हैं।

हमने पूछा- कितने लोगों को ऐसी बीमारियां हैं? कहते हैं- हर घर में। शायद ही कोई घर बचा हो। घर में कोई बीमार हो जाए तो सभी बीमार पड़ जाते हैं। हमने पूछा- लोग यहां कोरोना टेस्ट क्यों नहीं कराते? जवाब मिला- 60 किमी दूर ललितपुर कौन जाए। शुरू में कुछ लोग गए भी थे, भीड़ देखकर लौट आए। लॉकडाउन में बसें बंद हैं। मोटरसाइकिल पर मरीज को कैसे ले जाएं। बछलापुर के प्रधान रामराजा कहते हैं- यहां ऐसा पहली बार हो रहा है कि मलेरिया और टाइफाइड इंसान से इंसान में फैल रहा है और लोग मर रहे हैं।

ऐसे हालात में लोग इलाज कैसे करा रहे हैं?
सही जवाब पीरघाट, बालाबेहट, बरोदिया, बमनोरा, कपूरिया, सलैया, दूधई और शहपुरा गांव के हालात देखकर समझा जा सकता है। इन 8 गांवों में 15 हजार की आबादी है। यहां एक स्वास्थ्य केंद्र है- बालाबेहट। इसकी ओपीडी बंद है। ड्यूटी पर पवन नाम का वार्ड बॉय है। लोग उसे ही डॉक्टर समझते हैं। लोग सुबह से पवन से खांसी-बुखार की दवा पूछने पहुंचने लगते हैं।

पवन गांव वालों को बुखार की दवा दे भी देता है। कहता है- क्या करूं, लोगों की हालत तो देखिए, यहां से 60 किमी दूर ललितपुर और 40 किमी दूर बीना है। कैसे जाएंगे? पूर्व प्रधान जयपाल सिंह कहते हैं- हालात ये हैं कि ललितपुर में मेडिकल स्टोर वालों से ऐसे छिपकर दवाएं लेनी पड़ रही हैं, जैसे कोई अवैध शराब खरीदता हो। हमारे गांव में 90% लोग बुखार से पीड़ित हो चुके हैं। हम एक दिन ललितपुर गए थे। वहां एक केमिस्ट से अलग-अलग डिब्बों में बुखार, जुकाम की दवा ले आए। अब वही लोगों में बांट रहे हैं।

गांवों में कोरोना से मौतों का आंकड़ा क्या हो सकता है?
इस बारे में पूर्व भाजपा नेता और नवनिर्वाचित जिला पंचायत सदस्य नरेंद्र झा कहते हैं- मैं कोई राजनीतिक बात नहीं कर रहा, लेकिन गांव वालों का हाल समझना जरूरी है। सरकार के पास बेड नहीं है, तो तीन दिन से टेस्टिंग बंद कर दी है। ललितपुर जिला 110 किमी तक फैला है। गांव में ही टेस्टिंग और इलाज की व्यवस्था होनी चाहिए, वरना मौतें नहीं थमेंगी। अगर हर मौत की जांच हो तो सरकार को पता चलेगा कि लोग कैसे मर रहे हैं। एरावनी के पूर्व प्रधान जयपाल सिंह कहते हैं- मैं ऐसे 50 लोगों को जानता हूं, जो एक महीने में बिना इलाज के घर पर ही मर गए। इतनी मौतें तो सालभर में नहीं होती थीं।

एरावनी के बुजुर्ग फूल सिंह और नंदराम कहते हैं- हमें नहीं पता कि यहां कोरोना है या नहीं। बस लोग बहुत ज्यादा मर रहे हैं। रोज चिताएं जल रही हैं। दो महीने पहले हफ्ते में एकाध मौत की खबर आती थी, अब तो रोज आ रही है। इसी गांव के प्रभुलाल राजपूत कहते हैं- सरकारी रिकॉर्ड में हमारे गांव में एक भी व्यक्ति कोरोना से नहीं मरा। लेकिन, सच्चाई यह है कि जितने भी लोग पिछले दिनों मरे हैं, सभी को खांसी-बुखार था।

रेमडेसिविर तो दूर की बात, यहां तो पैरासिटामोल की भी कालाबाजारी
शहपुरा के धूप सिंह कहते हैं- हमारे गांव की आबादी करीब 500 है। इनमें करीब 400 लोग बीमार हैं। आस-पास के गांवों में भी यही हाल है। मेडिकल शॉप के संचालक विनय कहते हैं- लोग बहुत ज्यादा संख्या में बुखार की दवा लेने आ रहे हैं। बाला बेहट के बड्डे श्रीवास्तव कहते हैं कि झोलाछाप डॉक्टर 10 रुपए की पैरासिटामोल 200 रुपए में दे रहे हैं। क्या करें, मजबूरी है। दवा तो लेनी ही पड़ेगी।

झोलाछाप डॉक्टरों के यहां भीड़, मौत के बाद भी जांच नहीं
इस सवाल का जवाब झोलाछाप डॉक्टरों की दुकानों पर लगी मरीजों की कतार देखकर मिलता है। दुधई गांव का लंगड़ा डॉक्टर के नाम से मशहूर एक झोलाछाप है। सुबह 9 बजे 10-12 बीमार लोग इंतजार कर रहे हैं। ऐसे ही एक दूसरे गांव में बंगाली डॉक्टर के नाम से एक झोलाछाप है। उसके असिस्टेंट की कुछ दिन पहले मौत हो गई थी। यहां बाद में 70 लोगों के टेस्ट हुए तो 10 पॉजिटिव निकले। इस बात को भी एक महीना हो गया है। उसके बाद यहां दर्जनों लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन टेस्ट एक का भी नहीं हुआ।


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