ऑपरेशन जागृति फेस – 02 अभियान अपडेट दिनांक 25-06-2024 जनपद फिरोजाबाद ।

ऑपरेशन जागृति फेस -02 अभियान के तहत वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक फिरोजाबाद श्री सौरभ दीक्षित द्वारा थाना रामगढ क्षेत्रान्तर्गत एसएन पैलेस में महिलाओं / बालिकाओं / आमजन को ऑपरेशन जागृति के मुख्य बिन्दुओं के बारे में विस्तृत जानकारी देकर जागरूक किया गया । इस दौरान अपर पुलिस अधीक्षक नगर, क्षेत्राधिकारी नगर, यूनीसेफ टीम, प्रभारी निरीक्षक रामगढ एवं अन्य अधिकारी / कर्मचारीगण उपस्थित रहे ।

आपरेशन जागृति के प्रमुख मुद्दे –
1. Cyber Bulling – यहां साइबर बुलिंग से मतलब है कि सोशल मीडिया पर महिला व बालिकाओं के साथ जो अपराध होता है जैसे मान लो कि हमें किसी अंजान लड़के ने फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी। तो हम जनरली उसको बिना जाने पहचाने एक्सेप्ट कर लेते है। अब वह लड़का हमसे मैसेज में बात करने लगता है। जबकि हम ना तो उसे लड़के का बैकग्राउंड जानते हैं, ना उस लड़के को जानते हैं और ना ही उस लड़के की इंटेंशन को जानते हैं। फिर वह लड़का हमसे बातचीत करने लगता है। हमारी सारी पर्सनल इनफॉरमेशन लेने लगता है। और धीरे-धीरे करके हम उसके ट्रैप में फंस जाते हैं और एक दिन हमें इसका बहुत बड़ा खामियाजा भूगतना पड़ता है। तो इस तरह अनजान व्यक्ति की फ्रेंड रिक्वेस्ट को एक्सेप्ट मत कीजिए। वहीं दूसरी और जो बालिकाएं या महिलाएं अपनी फोटो को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपलोड करती हैं। वो भी बिना किसी प्राइवेसी के। तो कुछ अराजक तत्व उस बालिका अर्थात महिला की फोटो को एडिट करके या उस पर गंदा कमेंट डालकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपलोड करता है अर्थात वायरल करता है। जिससे उस महिला या बालिका की छवि खराब होती है। जिससे उसके दिमाग पर गलत असर पड़ता है और उसे बहुत सारी प्रॉब्लम्स का सामना करना पड़ता है। इसलिए बालिकाओं व महिलाओं को भी समझना होगा कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपनी पर्सनल इनफॉरमेशन और फोटो तथा वीडियो को सिक्योरिटी एंड प्राइवेसी के साथ डालें। किसी भी अनजान व्यक्ति की फ्रेंड रिक्वेस्ट या फॉलो रिक्वेस्ट को एक्सेप्ट ना करें। सावधानी के साथ ही सोशल मीडिया पर एक्टिव रहे ।

2. Counseling of victims of violence or crime – यहां काउंसलिंग से मतलब उन पीड़िताओं की काउंसलिंग से हैं जिनको समाज नहीं स्वीकारता अर्थात यदि किसी बालिका या महिला के साथ कोई अपराध हो जाता है तो समाज उसे हीन दृष्टि से देखता है । जिन लोगों ने दुर्व्यवहार का अनुभव किया है उनमें पुरानी बातों को सोचकर चिंता, विश्वास संबंधी समस्याएं आम हैं । कई बार ऐसे मामलों में पीड़िता की नये रिश्ते बनाने और खुशी पाने की क्षमता को प्रभावित हो जाती है और पीडिता नये रिश्त बनाने से घबराती है । कई बार ऐसे मामलों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का खतरा अधिक रहता है । ऐसे मामलों में पीडिता पुरानी बातों को याद करके डर, चिंता का अनुभव करते हैं साथ ही कहीं एकान्त में जाने, अजनबियों को देखकर घबरा जाते हैं । कई बार सोते हुए अचानक नींद में खलल पड़ जाता है । साथ ही इन मामलों में पीडिता में उदासी, खालीपन की भावनाएं पनप जाती है । ऐसे में लोगों अपनी पुरानी यादें अपने साथ हुए दुर्व्यहार की याद दिलाती है साथ ही वह पहले की तरह अपना जीवन जीने से कतराती है । ऐसे में हमें उन महिलाओं / बालिकाओं की काउंसलिंग करनी है और उनको ट्रामा से बाहर निकलना है । ट्रॉमा थेरेपी का लक्ष्य किसी को दर्दनाक घटना से जुड़ी भावनाओं और भावनाओं को संसाधित करने में मदद करना है और इसे अपने दैनिक जीवन जीने के तरीके में बाधा नहीं बनने देना है । हमें पीड़िताओं की लीगल हेल्प करनी है । पीड़िताओं की काउंसलिंग के लिए डॉक्टर, साइकोलॉजिस्ट, पुलिस आदि शामिल होते हैं जिनके द्वारा काउंसलिंग की जाती है ।

3-Sexual offence against Women – जिनमें से सबसे पहले आता है जैसे कि सामान्यतः हम लोग देखते हैं कि बालिका व महिलाओं के साथ जो अपराध व हिंसा होती है, जिस कारण समाज उसको हीन दृष्टि से देखता है या फिर कहें कि समाज द्वारा उनके साथ दोहरा व्यवहार किया जाता है। तो ऐसे में हमें उस पीड़ित बच्ची और महिला को समझना होगा, उसको सहारा देना होगा । जैसे मैं अभी आपको एक उदाहरण दूं कि एक मोहन नाम का व्यक्ति आगरा जाता है तो बस में रोहित नाम का व्यक्ति उसका पर्स चुरा लेता है। तो यहां पर पीड़ित कौन हुआ? मोहन । तो हम मोहन के साथ अपनी सहानुभूति प्रकट करते हैं। वहीं दूसरी ओर जो रोहित नाम का व्यक्ति, जिसने मोहन का पर्स चुराया था, उसके प्रति कहीं ना कहीं हमारा गलत दृष्टिकोण रहता है। जो कि ठीक है। क्योंकि रोहित ने पर्स चुराया है जो की एक चोर है इसलिए उसके प्रति समाज का दृष्टिकोण ठीक नहीं होता है। लेकिन यदि मैं आपको एक दूसरा उदाहरण दूं कि यदि किसी महिला के साथ कोई लड़का छेड़छाड़, बलात्कार या अन्य कोई अपराध करता है तो ऐसी स्थिति में हम उस लड़की को एक हीन दृष्टि से क्यों देखते हैं जबकि उसके साथ अपराध तो लड़के ने किया है। बल्कि कभी-कभी तो हमारा समाज उस लड़की को स्वीकार करने से भी कतराता है। जो कि गलत है। ऐसे में हमें उस महिला का सहारा बनना है, उसको समझाना है। क्योंकि वो लड़की जिसके साथ इस प्रकार की घटना होती है तो वो सोचती है कि मैं समाज में कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रही हूं । मेरी बहुत बेज्जती हो चुकी है । समाज मुझे हीन दृष्टि से देखेगा और तरह-तरह की बातें उसके दिमाग में आती हैं। जिसकी वजह से वह लड़की ट्रामा में चली जाती है। हमें उसको ट्रामा से निकालना है, उसकी लीगल हेल्प करनी है, ताकि वह अपने जीवन की एक नई शुरुआत कर सके और सम्मान पूर्वक अपना जीवन जियें।

4-False F.I.R – यहाँ फर्जी एफआईआर से मतलब है कि जो लोग अपने जमीनी विवाद, चुनावी रंजिश आदि को लेकर परिवार की महिला और बेटी को आगे करके, विपक्षी पर अनावश्यक दबाव बनाने हेतु थाने में जाकर झूठी एफआईआर दर्ज कराते हैं। जैसे सामान्यतः गांव में यदि दो पक्षों में मकान, दुकान, खेत अर्थात भूमि के बंटवारे का विवाद है। लेकिन लोग सोचते हैं कि अगर महिला की तरफ से मुकदमा लिखवा दिया जाएगा तो पुलिस द्वारा ज्यादा अच्छी और प्रभावी कार्यवाही की जाएगी। इसलिए कुछ लोग विपक्षी पर अनावश्यक दबाव बनाने हेतु थाने में जाकर, महिला को आगे करके, झूठी एफआईआर दर्ज कराते हैं। जिसका बुरा प्रभाव पड़ता है तथा निर्दोष व्यक्ति के जीवन पर भी बुरा असर पड़ता है और रंजिश बढ़ती चली जाती है। तो हमें इस प्रकार के कामों से बचाना है ।
5. Elopement – यहां इलोपमेंट से मतलब प्रेम प्रसंग के मामले में जिन बालक बालिका द्वारा गलत निर्णय लिया जाता है। उसके संबंध में उनको समझाना । सामान्यत 10 साल से ऊपर और 18 साल से काम के लड़के और लड़कियों में कुछ शारीरिक परिवर्तन होता है। जिसकी वजह से दोनों एक दूसरे की तरफ आकर्षित होते हैं। इमैच्योरिटी के कारण कुछ भी फैसला ले लेते हैं। कुछ पेरेंट्स होते हैं जो अपने बच्चों को स्पेस नहीं देते। इसलिए बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखें। बच्चों की हर छोटी-मोटी बात को ध्यानपूर्वक सुने और उस पर निर्णय लें। बच्चों को समझाएं उनको स्पेस दें और बच्चों के साथ समय बिताएं। वही में बच्चों से भी कहना चाहूंगी कि बच्चे अपने पेरेंट्स को अपना दोस्त समझें। उनके साथ अपनी हर एक प्रॉब्लम और हर एक बात को शेयर करें। अपने टीचर्स से अपनी बातों को शेयर करें। जो पेरेंट्स अपने बच्चों के साथ ज्यादा ही स्ट्रिक्ट होते हैं, वो बच्चे अपने पेरेंट्स से कोई भी बात शेयर करने में डरते हैं। ऐसे में बच्चे अपनी बातों को अपने पेरेंट्स या अपने टीचर से शेयर नहीं कर पाते और कुछ ना कुछ बड़ा कदम उठा लेते हैं। अगर हम अपने बच्चों के साथ एक मधुर व्यवहार रखेंगे तो बच्चे भी हमारे साथ अपनी हर एक बात को शेयर करेंगे। जिस किसी भी घटना से बचा जा सकता है। जैसे कुछ बालक बालिका जिनकी उम्र 18 वर्ष से कम होती है किंतु प्रेम प्रसंग में आ जाते हैं और 18 साल से कम उम्र में ही साथ में शादी करके रहना चाहते हैं। इसके बारे में उन बालक बालिकाओं को भली बाती समझना और आयु पूर्ण होने तक अपने करियर पर फोकस करके अगला कदम उठाने के लिए समझना चाहिए ।

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