नई दिल्ली। लखनऊ दुनियाभर में चिकन के कपड़ों और फलों के राजा आम की दशहरी समेत कई किस्मों के लिए मशहूर है, मगर इसका सियासी मिजाज आम कभी नहीं रहा। नवाबों की नगरी 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम की कोख से आधुनिक नगरी के स्वरुप के विस्तार तक की यात्रा शुरू कर यूपी की राजधानी बना।
यूपी के हर जिले का राजनीतिक रोडमैप लखनऊ से ही बनकर तैयार होता है। जिले में 9 विधानसभा सीटें हैं और लगभग हर सीट का सियासी समीकरण समय-समय पर बदलता रहा है । मलिहाबाद- दलित बाहुल्य मलिहाबाद सीट पर बीजेपी ने सांसद कौशल किशोर की पत्नी जय देवी पर एक बार फिर भरोसा जताया है। समाजवादी पार्टी ने सुरेंद्र कुमार, कांग्रेस से इंदल रावत और बसपा से जगदीश रावत चुनावी मैदान में हैं।
मलिहाबाद सुरक्षित सीट के इतिहास की बात करें तो इस सीट पर 7 बार कांग्रेस और 4 बार समाजवादी पार्टी कब्जा कर चुकी है। बीजेपी 2017 में पहली बार मलिहाबाद से चुनाव जीती थी। इस सीट पर दलित वोटर्स निर्णायक भूमिका में हैं।बख्शी का तालाब- 2012 से पहले लखनऊ के ग्रामीण इलाके से बनी यह सीट महोना विधानसभा में आती थी परसीमन के बाद बख्शी तालाब विधानसभा सीट का गठन हुआ। दलित और पिछड़ी जाति बाहुल्य इस सीट पर सपा से गोमती यादव ने जीत दर्ज की थी। वर्तमान में बीजेपी ने पुराने कार्यकर्ता योगेश शुक्ला को मैदान में उतारा है। वहीं सपा ने गोमती यादव, कांग्रेस ने ललन कुमार और बसपा ने सलाउद्दीन सिद्दीकी को मैदान में उतारा है। इस सीट पर अनुसूचित जाति जनजाति के वोटर की संख्या सबसे ज्यादा है।
सरोजनी नगर- बीजेपी ने इस सीट से इस बार स्वाति सिंह की जगह ईडी के ज्वाइंट डायरेक्टर राजेश्वर सिंह को चुनावी मैदान में उतारा है। सरोजनी नगर के जातीय समीकरण की बात करें तो सरोजिनी नगर सीट पर सबसे ज्यादा ब्राह्मण वोटर 1 लाख 10 हजार हैं। जाटव वोटर्स भी इस सीट पर अच्छा खासा प्रभाव रखते हैं। इस सीट से कांग्रेस ने बबलू सिंह को, बसपा ने जलीस खान को वहीं सपा ने प्रोफेसर अभिषेक मिश्रा को टिकट दिया है। सरोजिनी नगर सीट राजेश्वर सिंह और अभिषेक मिश्रा की दावेदारी की वजह से ब्राह्मण और ठाकुरों के वर्चस्व की लड़ाई बन गई है।
लखनऊ पश्चिम- ये सीट मुस्लिम बाहुल्य सीट है, दूसरे नंबर पर यहां पर ब्राह्मण वोटर्स हैं। इस सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा है। ये सीट बीजेपी के दिग्गज नेता रहे लालजी टंडन की परंपरागत सीट रही है। 2017 में बीजेपी से सुरेश श्रीवास्तव ने इस सीट पर जीत हासिल की थी। लखनऊ उत्तर- 2008 के परिसीमन के बाद 2012 के चुनाव से अस्तित्व में आई थी। 2017 में बीजेपी से नीरज बोरा ने इस सीट से जीत दर्ज की थी। महोना और पूर्वी सीटों के इलाकों से बनी इस उत्तरी सीट पर ब्राह्मण और मुस्लिम वोटरों का बोलबाला है।लखनऊ पूर्व- लखनऊ पूर्वी सीट बीजेपी की परंपरागत सीट रही है।1991 से लेकर 2017 तक पूर्व विधानसभा पर बीजेपी का ही कब्जा रहा है।
वर्तमान में प्रदेश सरकार के कैबिनेट मिनिस्टर आशुतोष टंडन इसी सीट से विधायक हैं। वोट बैंक की बात करें तो इस सीट पर क्षत्रिय, ब्राह्मण और दलित वोटर्स सबसे अधिक संख्या में हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर मंत्री आशुतोष टंडन को ही मैदान में उतारा है। समाजवादी पार्टी से अनुराग भदौरिया कांग्रेस से मनोज तिवारी, बीएसपी ने आशीष सिन्हा को टिकट दिया है।लखनऊ मध्य- यह पुराने लखनऊ वाली सीट है और ये मुस्लिम बाहुल्य सीट मानी जाती है। 2017 के चुनाव में इस सीट पर कैबिनेट मंत्री बृजेश पाठक ने जीत दर्ज की थी। बीजेपी इस सीट पर 7 बार जीत दर्ज कर चुकी है। दो बार कांग्रेस का भी कब्जा रहा है।
वर्तमान में बीजेपी ने इस सीट पर अहियागंज से सभासद रजनीश गुप्ता को मैदान में उतारा है. समाजवादी पार्टी ने रविदास मेहरोत्रा को, बीएसपी ने आशीष श्रीवास्तव को और कांग्रेस ने सदफ जफर को मैदान में है। लखनऊ केंट- इस सीट को भी बीजेपी की लिए सबसे सुरक्षित सीट माना जाता है. वजह है सर्वाधिक ब्राह्मण वोटरों की संख्या। पहाड़ के निवासी वोटरों की अधिक संख्या भी इस सीट पर निर्णायक भूमिका निभाती है।
2017 के चुनाव में इस सीट पर बीजेपी के पुराने नेता सुरेश तिवारी ने जीत दर्ज की थी। इस बार बीजेपी ने अपने कैबिनेट मिनिस्टर बृजेश पाठक की सीट बदलकर कैंट से प्रत्याशी बनाया है तो समाजवादी पार्टी ने अपने सभासद राजू गांधी को मैदान में उतारा है।
मोहनलाल गंज- लखनऊ के मोहनलालगंज सीट ऐतिहासिक सीट है. देश के पहले विधानसभा चुनाव के साथ यह सीट अस्तित्व में है. मोहनलालगंज सुरक्षित समाजवादी पार्टी की परंपरागत सीट मानी जाती रही है।
2017 की मोदी लहर में भी इसी पर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी अमरीश पुष्कर ने जीत दर्ज की थी. इस सीट पर इस बार सपा ने सुशीला सरोज को मैदान में उतारा है. बीजेपी ने अमरीश कुमार को टिकट दिया है तो कांग्रेस से ममता चौधरी और बीएसपी से देवेंद्र कुमार मैदान में है।