लखनऊ। आजमगढ़ के बहाने भारतीय जनता पार्टी पूर्वी यूपी में समाजवादी पार्टी को घेरने की योजना तैयार कर रही है। आजमगढ़ की कुछ विधानसभा सीटों पर मयावती की पार्टी बसपा का भी दबदबा रहा है । यहां से बसपा के टिकट पर कभी अकबर अहमद डंपी भी सांसद हुआ करते थे, सुखदेव राजभर भी आजमगढ़ के लालगंज क्षेत्र से आते थे, बसपा के संस्थापक कांशीराम के सहयोगियों में से एक गांधी आजाद का भी यह गृह जिला है। यहां 10 विधानसभा और दो लोकसभा सीटों पर सपा और बसपा का ही दबदबा रहता है। लेकिन इस बार भाजपा की योजना आजमगढ़ में अपने प्रभाव को बढ़ाकर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को घेरने की है। 2019 लोकसभा के चुनाव में समाजवादी पार्टी से अखिलेश यादव को 6,21,578 वही भारतीय जनता पार्टी के दिनेशलाल यादव निरहुआ को 3 61704 वोटों से संतोष करना पड़ा था।

भाजपा का परचम लहराने का अर्थ है आजमगढ़ में किला फतह करना

गृहमंत्री अमित शाह यूपी में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए 300 पार का लगातार नारा दे रहे हैं। इसकी रणनीति को मुकम्मल बनाने के लिए वह पहले वाराणसी में पार्टी के नेताओं, कार्यकर्ताओं के साथ मैराथन बैठक करेंगे। वाराणसी से फीडबैक लेने के बाद वह आजमगढ़ और गोरखपुर भी जाएंगे। आजमगढ़ का दौरा को विशेष तौर पर देखा जा रहा हैं । 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां से दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को अपना उम्मीदवार बनाया था। आजमगढ़ की विधानसभा सीट पर भी 1996 से समाजवादी पार्टी के विधायक दुर्गा प्रसाद यादव का लगातार कब्जा बना हुआ है। दरअसल, यहां करीब 45 प्रतिशत यादव-मुस्लिम मतदाता हैं। अगड़ी जातियां 24 प्रतिशत के करीब हैं। जबकि दलित 30 प्रतिशत के आस-पास हैं। इसलिए भाजपा आजमगढ़ के राजनीतिक समीकरण को बदलने में जी-जान से लगी हुई है।

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