फिरोजाबाद। आचार्य श्री विवेक सागर महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि त्याग की साक्षात् मूर्ति के समागम के बिना त्याग के मार्ग में अग्रसर होना संभव नहीं है। जैसे कहा जाता है खरबूजे को देखकर खरबूजे का रंग बदलता है अर्थात पकने लगता है। ऐसे ही त्यागी व्रती को देखकर त्याग के भाव सहज ही जाग्रत हो जाती है।
उन्होंने कहा कि उत्तम त्याग धर्म-छोड़ने का संकेत देता है, बाहरी वैभव का अर्जन नहीं, अंतरंग वैभव का अर्जन करो। छोड़ना धर्म में जोड़ना नहीं। छोड़ने से व्यक्ति हल्का होता है ऊपर उठता है और जोड़ने से व्यक्ति वजनदार होकर नीचे चला जाता है। जैसे तराजू जब ग्रहण करता है तो अधोगति को प्राप्त होता है और जब छोड़ता जाता है तो ऊर्ध्वगमन करता है। त्यागना प्राणी का नैसर्गिक नियम है। वृक्ष में पत्ते, फल फूल आते हैं और वृक्ष उनका त्याग कर देता है। त्याग करने के बाद ही उसमें नई उत्पत्ति होती है। व्यक्ति जीवनभर जोड़ता है। फिर भी उसकी आकांक्षा पूर्ण नहीं हो पाती और उसी आकांक्षा में जीवन का अंत कर देता है।

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