फिरोजाबाद। जिस पर्युषण पर्व को हम महीनों से याद कर थे वह आ गए। जब हम किसी मेहमान को याद करते है और वह आ जाए तो हम बहुत प्रसन्न होते और वह जब जाने लगता है तो मन मे खिन्नता आ जाती है। ऐसे ही हमारे पर्व के पांच दिन निकल गए और पर्व जाने को है।
धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्यश्री विवेक सागर ने कहा कि हमारे जीवन मे लक्ष्य होना चाहिए, संयम होना चाहिए उसी व्यक्ति को याद किया जाता है जिसमे अच्छाई होती है। जिसके जीवन मे सयंम होता है। यदि हमारे जीवन मे सयंम होगा तो हम आनन्द की अनुभूति कर सकते है। यदि हमारे जीवन में प्रमाद का रंग चढ़ गया तो हमारा जीवन नष्ट हो जाएगा। इसलिए आनंद की अनुभूति के साथ अपने जीवन को जोड़ने की कोशिश करना। मुनिश्री ने कहा कि संयम मुक्ति का साक्षात कारण है। दुखो से छूटने का एकमात्र उपाय सयंम है। बिना सयंम के धारण किए तीर्थंकर को भी मोक्ष प्राप्त नहीं होता। हमे भी सयंम को अंगीकार करके अपने इस दुर्लभ मानव जीवन को सफल करना है। पहले हम छोटे छोटे नियम ले अपने जीवन को थोड़ा सयंमित करे और धीरे धीरे सयंम के मार्ग पर चलने का प्रयास करे। क्योकि सयंम ही संसार की सर्वश्रेष्ठ वस्तु है। सयंम को पाने का पुरुषार्थ करें। सयंम को अंगीकार करे अपने जीवन को धन्य बनाये। पांच दिन के पश्चात ऐलक विप्रमाण सागर महाराज की निर्विध्न पारणा सम्पन्न हुई।

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