नई दिल्ली। जैसे जैसे हम एडवांस टेक्नोलॉजी की ओर बढ़ते जा रहे हैं वैसे-वैसे देश के हर सेक्टर को तकनीक से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। केंद्र सरकार ने कृषि में डिजिटल तकनीक के महत्व को समझते हुए,इन दोनों को जोड़ने का काम शुरू कर दिया है। मुख्यमंत्रियों के साथ हुई बैठक में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि अभी तक 5.5 करोड़ किसानों का डाटाबेस तैयार कर लिया गया है और राज्यों के सहयोग से दिसंबर-2021 तक आठ करोड़ से अधिक किसानों का डाटाबेस बनकर तैयार हो जाएगा। बता दें,इस बैठक में खाद्य व उपभोक्ता मामलों के मंत्री पीयूष गोयल भी मौजूद रहे। ये डाटाबेस कृषि व किसानों की प्रगति के लिए राज्यों, केंद्रीय विभागों और विभिन्न संस्थाओं को उपलब्ध करावाया जाएगा।पीएम-किसान योजना के तहत अब तक कुल 11.37 करोड़ से अधिक किसान परिवारों को ₹1.58 लाख करोड़ से अधिक की राशि उनके बैंक खातों में जारी की जा चुकी है।

क्या है डिजिटल डाटाबेस?
दरअसल,डिजिटल डाटाबेस का उद्देश्य किसानों को एक विशिष्ट डिजिटल पहचान देना है। इसमें किसानों का व्यक्तिगत विवरण, उनके द्वारा खेती की जाने वाली भूमि की जानकारी,उत्पादन और योजनाओं के लाभ आदि की जानकारी शामिल की जाएगी। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बैठक में बताया कि पीएम किसान स्कीम के जरिए सरकार के पास 11 करोड़ किसानों का डाटा एकत्र हो चुका है। जिसमें उनकी खेती योग्य जमीन,आधार कार्ड,बैंक अकाउंट नंबर और मोबाइल नंबर जैसी जानकारियां शामिल हैं। इस डाटाबेस के तैयार हो जाने से किसानों के लिए योजनाओं का लाभ लेना और भी आसान हो जाएगा।

सामान्य तौर पर केंद्र सरकार या राज्य सरकार कोई योजना लागू करती है तो अक्सर जिन योजनाओं के प्रति ज्यादा जागरूकता होती है या जो लोग उनके प्रति जागरूक होते हैं,वही उस योजना का लाभ उठा पाते हैं। लेकिन इस डाटाबेस के तैयार हो जाने से उस योजना की जहां जरूरत होगी, वहीं उसका क्रियान्वयन होगा। इससे ग्रामवासी,किसान,फसल के बाद किसान नुकसान से बच सके,उसको सही दाम मिल सके,समय पर किसान का उत्पादन बिक सके आदि जैसी चीजों को लेकर एक तंत्र स्थापित हो पाएगा।

आत्मनिर्भर देश की आत्मनिर्भर कृषि
आत्मनिर्भर भारत के लिए कृषि को आत्मनिर्भर बनाना जरूरी है। देश का कृषि क्षेत्र मजबूत होगा तो देश भी मजबूत होगा और रोजगार के साधन बढ़ेंगे। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने आगे कहा कि देश की कृषि को वैश्विक मानदंडों के अनुरूप बनाने और किसानों के लिए लाभकारी बनाने के उद्देश्य से सरकार इस क्षेत्र को आधुनिक बनाने के लिए काम कर रही है। कृषि क्षेत्र मजबूत होगा तो देश मजबूत होगा,रोजगार के साधन बढ़ेंगे।

क्या है डिजिटल एग्रीकल्चर?
सुरक्षित, पौष्टिक और किफायती भोजन उपलब्ध कराने के साथ, खेती को सामाजिक,आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से लाभदायक और टिकाऊ बनाने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी यानि इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है,बस यही डिजिटल एग्रीकल्चर है। वर्तमान में किसान खेती से जुड़ी अपनी समस्याओं से निपटने,कृषि विधियां सीखने और दुनिया भर में हो रहे कृषि प्रयोगों के बारे में जानने के लिए फेसबुक,व्हाट्सएप,यूट्यूब जैसे साधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं। सरकार द्वारा किसान कॉल सेंटर,ई-चौपाल,ग्रामीण ज्ञान केंद्र, ई-कृषि जैसी योजनाओं की शुरुआत आईटी के जरिए ही हुई। खेती को बेहतर करने में सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़े ये प्लेटफॉर्म काफी कम आ रहे हैं।

इसके माध्यम से अब पारदर्शिता आ रही है,जिसका उदाहरण प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि स्कीम है। जिसके तहत अभी तक 11.37 करोड़ किसानों को 1.58 लाख करोड़ रुपये सीधे उनके बैंक खातों में जमा कराए गए हैं।

इस डाटाबेस से किसानों को क्या फायदा हुआ?
दरअसल, इस डाटाबेस से सरकार को मूल्यांकन व आकलन में सुविधा होगी। कृषि मंत्रालय के अनुसार,पीएम-किसान का डाटा किसान क्रेडिट कार्ड के डाटा से लिंक करने से कोविड-काल में 2.37 करोड़ से अधिक किसानों को बैंकों से केसीसी का लाभ मिला है। किसानों को इससे 2.44 लाख करोड़ रुपये का कृषि कर्ज मिला है।

कोविड काल में बहुत सारे कारखानों की अर्थव्यवस्था खड़ी नहीं रह पाई, लेकिन खेती में किसान ने काम भी किया,उत्पादन भी किया,उपार्जन भी हुआ और पहले से अधिक पैदावार भी हुई। खेती ने हमको स्थिर रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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