हर माह मुफ्त का राशन बांटते बांटते राशन डीलर, खुद ही भुखमरी के कगार पर

हर महीने मुफ्त का राशन बांटने वाले राशन डीलर, जो कि महीने में एक बार नहीं वल्कि महीने में दो-दो बार सभी राशन कार्ड धारकों को,माननीय मोदी जी और माननीय योगी जी के आदेशों का पालन कर, “प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना” के तहत सुबह से लेकर शाम तक, कड़ी मेहनत करके कार्ड धारकों को, मुफ्त राशन बांट रहे हैं, लेकिन अब वह खुद ही आ खड़े हुए हैं, भुखमारी के कगार पर।

पैसे ब्याज पर लाकर, बैंकों में जमा कर, चालान पास कराने के बाद जो खाद्यान्न उठा रहे है, उसको मुफ्त में बाट रहे है राशन डीलर।

मुफ्त में राशन बांटने का जो 70 पैसा कमीशन मिलता है, वह अन्य प्रदेशों में ₹1.5 से ₹2 के बीच है, किंतु उत्तर प्रदेश में वह मात्र 70 पैसे है, जबकि केंद्र सरकार का यह कहना है वन नेशन 1 राशन कार्ड , जब वन नेशन 1 राशन कार्ड हो सकता है ,तो वन नेशन वन कमीशन क्यों नहीं?

जून 2021 तक खाद्यान्न का जो भाड़ा, गोदाम से लेकर के राशन की दुकान तक लाने के लिए जो भाड़ा दिया जाता था, जिसे डोर स्टेप डिलीवरी का नाम सरकार द्वारा दिया गया था ,किंतु जून 2021 के बाद से डोर स्टेप डिलीवरी का ठेका भी, मौजूदा सरकार ने खत्म कर दिया और उस भाड़े को भी सरकार ने राशन डीलरों के कंधे पर डाल दिया, आखिर क्यों ? जब सरकार को पहले से ही पता था, कि डोर स्टेप डिलीवरी का ठेका जून 2021 तक ही था,तो क्या सरकार को पहले से ही इस ठेके को समय रहते आगे नहीं बढ़ाना चाहिए था, या समय रहते टेंडर नहीं निकालने चाहिए थे, जब इस बारे में राशन डीलरों से बात की गई तो उनका साफ तौर से कहा कि शासन और प्रशासन की यह घोर लापरवाही है, जहां अन्य प्रदेशों की सरकारें लाभ बढ़ाने का कार्य कर रही हैं इस कोरोना काल में भी, क्यों कि राशन डीलरों ने भी अपनी जान जोखिम में डालकर कोरोना वॉरीयर्स की तरह ही अपनी जिम्मेदारी निभाई है पूर्णरूप से और उसके एवज में उन्हें सरकार के द्वारा मुनाफा बढ़ाने की जगह, ये इनाम दिया जा रहा है आखिर क्यों?

जहां राशन डीलर पहले सिर्फ कमीशन और भाड़े की बचत करके अपने घर का गुजारा कर लेते थे, वह अब, मात्र उनको बारदाना बेचकर ही बहुत सीमित संसाधनों के साथ अपना और अपने परिवार का पेट भरने की जिधोजहद मे लगे हुए है, जबकि अभी तो उनके बच्चे कोरोना काल में स्कूल भी नहीं जा रहे हैं, यदि स्कूल खुलते हैं तो आखिर कैसे चुका पाएंगे अपने बच्चो की स्कूल की फीस, क्या अच्छे स्कूलों में पढ़ा पाएंगे यह राशन डीलर?

क्या यही इनाम है उनके लिए सरकार द्वारा, जिन्होंने अपनी और अपने परिवार की बिना परवाह किए कोरोना कॉल में भी अपनी जान को जोखिम में डालकर सुबह से लेकर शाम तक हर माह में दो – दो बार राशन वितरण किया।

निशुल्क का राशन बांटते बांटते जो राशन डीलरों के खाते में 70 पैसे का कमीशन आना था,वह भी विगत कई माह से अभी तक नहीं उनके खाते मे आया, आखिर क्यों?

आखिर कोटेदार अपनी जेब से कब तक अपनी राशन की दुकान में पैसा लगाएंगे। कोटेदारों के लिए मजबूरी यह बनी हुई है, कि उन्होने अपने पूरे जीवनकाल में इसके अलावा कोई दूसरा कार्य नहीं किया, और ना ही उन्हे आता है, ना कहीं नौकरी की, और ना कोई दूसरा रोजी रोजगार,तो अब वृद्धावस्था में या लगभग जीवन के अंतिम पड़ाव में वह दूसरा रोजगार कैसे सीखे और तलाश करें। यही मजबूरी बन गई है उन राशन डीलरो की, कि आखिर इस उम्र में करें तो क्या करें, ना तो वह सरकार की आदेशों की अवहेलना कर सकते है और ना ही अधिकारियों की, इसलिए कोटेदार बेचारा, लाचार,बेबस और मजबूर होकर चुपचाप सब कुछ सहन कर रहा है, लेकिन हर चीज की एक सीमा होती है, अब देखने वाली बात यह है ,कि आखिर कोटेदारों की सहनशीलता कब तक साथ देगी, और क्या कोई सक्षम अधिकारी मसीहा बनकर उनका मददगार बनेगा भी या नहीं, कुछ कोटेदारों का तो यह भी कहना है, कि ऐसा ही रहा तो उनको मजबूरन अपनी जीवन लीला समाप्त करने के लिए उन्हे विवश होना पड़ेगा जिसकी जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ शासन और प्रशासन की होगी। अब देखने वाली बात यह है कि आखिर राशन डीलरों को न्याय मिलेगा या नहीं और मिलेगा भी तो आखिर कब तक


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