केरल में लॉकडाउन लगा है और अनोखी बात यह है कि केरल में लॉकडाउन की अवधि के दौरान बिजली का बिल नहीं देना पड़ेगा। पानी का बिल भी नहीं आएगा। केरलवासियों को अनाज भी मुफ्त दिया जाएगा। कोविड से निपटने में केरल इसीलिए इतना सक्षम सिध्द हो रहा है कि वहां वार्ड स्तर पर समितियां बनी हुई हैं। इन वार्ड स्तर समितियों के माध्यम से गरीबों के घर राशन बंटवाया जाएगा और मरीजों की भी खैर-खबर ली जाएगी।
लॉकडाउन के दौरान एक तरह से लोग सरकार के कैदी हो जाते हैं। कैदी को दाना-पानी देना कैद करने वाले का फर्ज होता है। जैसे हम पिंजरे में बंद पंछियों को दाना पानी डालते हैं, उनके हवा उजाले का ध्यान रखते हैं, सर्दी गर्मी से उनकी हिफाज़त करते हैं उसी तरह लॉकडाउन लगने पर सरकार का दायित्व है कि वो अपने नागरिकों से टैक्स ना वसूले, बिजली बिल ना ले, उल्टे अनाज गैस वगैरह मुफ्त दे। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन में इतनी संवेदनशीलता और समझदारी है कि वे पूरे देश के मुकाबले अपने नागरिकों से बेहतर बर्ताव कर रहे हैं।
इसके बरखिलाफ नरेंद्र मोदी ने पिछले साल क्या किया। लंबा लॉकडाउन लगाकर लोगों को भूखा मरने और पैदल चलने के लिए छोड़ दिया। जबकि उनके पास बहुत बड़ा खजाना था। वे सरकारी खजाने खोल सकते थे। मुफ्त बसें चलवा सकते थे। उनके मित्र अबानी अडानी से बोलकर देश के नागरिकों के लिए बहुत सारी सुविधाएं मुफ्त कर सकते थे। मगर वे अपने महल में बुत बने बैठे रहे और लोगों को मरता देखते रहे। केरल अपने राज्य के खजाने से लोगों को मुफ्त सुविधाएं और अनाज देकर भी घाटे में नहीं है और मोदी रोज़ घर की कोई सम्पत्ति बेच कर भी कंगाल हो रहे हैं। सेंट्रल विस्टा के लिए धन है, अपने निजी हवाई जहाजों के लिए साढ़े आठ हजार करोड़ हैं, मगर जनता के लिए कुछ नहीं है।
अगर केरल के पास वार्ड स्तर समितियां हैं तो भाजपा के पास तो बूथ लेबल तक कार्यकर्ता हैं। उन कार्यकर्ताओं को सेवा के काम पर लगाया जा सकता था, मगर नहीं लगाया गया। इतिहास याद रखेगा कि संघ ने जिसके लाखों करोड़ों स्वयंसेवक हैं और भाजपा जिसके करोड़ों कार्यकर्ता हैं, इन्होंने लॉकडाउन के दौरान और कोविड महामारी के दौरान घरों से निकलकर कोई सेवा नहीं की। अगर संघ के स्वयंसेवक, भाजपा के कार्यकर्ता मैदान में निकल आते तो महामारी बहुत कम नुकसान में विदा हो सकती थी। अगर सर्वदलीय बैठक करके सभी राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं को सेवा के लिए उतार दिया जाता तो बहुत फर्क पड़ सकता था। कांग्रेस ने आखिरकार पहल की और बोला। सरकार के पास यदि अपने नागरिकों के लिए संवेदनशीलता नहीं है, तो ऐसी मज़बूत सरकार असल में क्रूर सरकार है। बहुमत के घमंड में फूली क्रूर सरकारों को देश की जनता ने पहले भी सबक सिखाया है और आगे भी सिखाएगी।