देश कोरोना की दूसरी लहर का सामना कर रहा है. ऐसे में सावधानी ही इस लहर को कुंद कर सकती है.
नई दिल्लीः देश में कहर बरपा रही कोरोना की दूसरी लहर की रफ्तार भले ही पहले से कुछ कम हुई है लेकिन इस भ्रम में कतई न रहिये कि ये अभी पूरी तरह से थम जायेगी. महामारी से जुड़े देश के मशहूर वैज्ञानिक शाहिद जमील ने चेताया है कि इस लहर का असर जुलाई तक रह सकता है,लिहाजा लोग पहली लहर की तरह बेपरवाह न हों और पूरी सावधानी बरतें. इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि पीक पर जाने के बाद यह लहर बहुत जल्द नीचे नहीं आने वाली और पहली लहर के मुकाबले इसमें ज्यादा वक्त लगेगा. हालांकि प्रतिदिन चार लाख मामलों का आंकड़ा पर कर लेने के बाद पिछले तीन दिन से इसमें कुछ कमी कमी आई है लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि सरकारें एकदम से ढिलाई बरतने लग जाएं.

बायोसाइंस स्कूल और अशोका यूनिवर्सिटी से जुड़े वायरोलॉजिस्ट शाहिद जमील ने कहा, “ये कहना अभी जल्दबाजी होगी कि भारत में कोरोना पीक पर है. कोरोना की दूसरी लहर में मामले भले ही अब बढ़ नहीं रहे हैं, लेकिन पीक पर जाने के बाद भी ये इतनी आसानी से नीचे नहीं आने वाली है. इस लहर का प्रभाव जुलाई तक रहने की आशंका है. इसका मतलब हुआ कि अगर अगर ये लहर नीचे आना शुरू हो जाए तो भी हमें संक्रमितों की बड़ी संख्या रोजाना देखने को मिल सकती है.”

वैसे जमील के अलावा देश के अन्य वैज्ञानिक भी ये आशंका जता चुके हैं कि दूसरी लहर में कोरोना के मामले उस तरह नीचे नहीं आएंगे जैसा कि पहली लहर में देखा गया था. जमील के मुताबिक “कोरोना की पहली लहर में हमने लगातार गिरावट देखी थी. लेकिन याद रखें कि कोरोना की दूसरी लहर में हमने शुरुआत ही बड़ी संख्या के साथ की है. पहली लहर के रोजाना 96 हजार मामलों के मुकाबले दूसरी लहर की शुरुआत चार लाख मामलों के साथ हुई है, तो इसे नीचे आने में भी ज्यादा समय लगेगा.

वैसे जमील ने एक और अहम सवाल उठाते हुए जो दावा किया है, उस पर केंद्र व राज्य सरकारों को गंभीरता से विचार करना चाहिए कि आखिर चूक कहां हो रही है. उन्होंने दावा किया कि भारत में सामने आ रहा मृत्य दर का डेटा पूरी तरह से गलत है. वे किसी व्यक्ति, समूह या राज्य के आधार पर डेटा कलेक्ट करने के डिजाइन को गलत नहीं मानते हैं बल्कि डेटा को जिस तरह से रिकॉर्ड किया जा रहा है, उस तरीके से वे नाखुश हैं. जमील के इस दावे से तो यही लगता है कि राज्य सरकारें कोरोना से होने वाली मौतों के सही आंकड़े छुपा रही हैं.

उन्होंने कहा कि वायरलॉजिस्ट भी ऐसा मानते हैं कि भारत में लोगों ने प्रोटोकॉल्स का पालन न करके वायरस को तेजी से पैर पसारने का मौका दिया है. पिछले साल दिसंबर में जब मामले काफी कम हो चुके थे, हमने भारतीयों की मजबूत इम्यूनिटी जैसी बातों पर विश्वास करना शुरू कर दिया था. इसके बाद जनवरी और फरवरी के महीने में जमकर शादियां हुईं. इस तरह के कार्यक्रमों से कोरोना संक्रमण बड़े स्तर पर फैल गया.महामारी के बीच चुनावी रैलियों और धार्मिक आयोजनों पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा, “इस वजह से भी दूसरी लहर में मामले ज्यादा तेजी से बढ़े हैं.”

जिस तरह से आज अधिकांश राज्य वैक्सीन की कमी का रोना रो रहे हैं और सेंटरों के बाहर टीका लगवाने के लिए लोगों की लंबी कतारें हैं, उसे लेकर भी जमील ने चिंता जाहिर की है. उन्होंने कहा कि “जनवरी और फरवरी में जब हमारे पास अवसर था, तब पर्याप्त लोगों का टीकाकरण नहीं कर पाए. मार्च के तीसरे हफ़्ते में जब मामले बढ़ना शुरू हुए तब तक शायद हम महज दो प्रतिशत लोगों को ही टीका लगा पाये थे.”

हालांकि जमील की यह बात कुछ हद तक सही भी है कि शुरुआत में हमारे यहां बहुत सारे लोग वैक्सीन को सुरक्षित नहीं मान रहे थे. उन्होंने भरोसा दिलाया है कि वैक्सीन पूरी तरह से सुरक्षित और इसके बहुत कम ही साइड इफेक्ट हैं. वायरस की चपेट में आने से मौत होने की संभावना साइड इफेक्ट की तुलना में बहुत ज्यादा है.

कई राज्यों में वैक्सीन की कमी पर उन्होंने कहा कि “सभी बड़े देशों ने अपनी आबादी के एक बड़े हिस्से को वैक्सीनेट किया है और जून तक के लिए वैक्सीन बुक कर ली थी.लेकिन भारत में ऐसा नहीं हुआ. देश की सबसे बड़ी वैक्सीन कंपनियां प्राइवेट-लिमिटेड हैं, लिहाज़ा अब हम पूरी तरह से प्राइवेट सेक्टर पर ही निर्भर हो गए हैं और प्राइवेट सेक्टर्स कभी चैरिटी के लिए ऐसे काम नहीं करते हैं.


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