सरकार ने कोरोना के बढ़ते केसेस को देखते हुए गाइडलाइन की जारी, जो प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन या प्राइवेट स्कूल संचालकों के पूरे विरुद्ध मैं रही
जिसके कारण समस्त प्राइवेट स्कूल संचालकों के चेहरे से उतर गए
फ़िरोज़ाबाद के विद्यालय संचालकों ने अपना दुख जताते हुए बताया, कि सरकार को सिर्फ और सिर्फ प्राइवेट विद्यालय खोलने पर ही कोरोना का डर दिखता है,जबकि सरकार चुनाव को लेकर, और चुनाव से संबंधित रैलियों या शादी समारोह में उमड़ रही भीड़, एवं मंगल बाजार, रेस्टोरेंट, होटल और तमाम ऐसे व्यवसाय जहां भीड़ भाड़ ऐसे उमड़ रही है मानो के भविष्य मैं उनको वह सुविधाएं नहीं मिल पायेंगी जो अब मिल रही हैं ,लोग एक दूसरे से मुंह के पास मुंह रखकर के वार्तालाप कर रहे हैं, बेझिझक और बिना किसी डर के खरीदारी कर रहे हैं, बिना किसी भय और डर के शादी विवाह मैरिज होम रिसोर्ट में 1000 से लेकर के पांच 5000 तक की भीड़ इकट्ठा कर रहे हैं और लाखों की तादाद में चुनावी रैलियां आयोजित हो रही है, लेकिन दुर्भाग्य इस देश का कि उन सभी के लिए तो छूट है, लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार ने उनको खुलेआम परमिशन (छूट) दे रखी है, किंतु स्कूल संचालकों से जब बात की तो उन्होंने अपना दुखड़ा रोया और बताया, की पिछली साल तो बच्चों की कोरोना के चलते खराब हो गई और इस साल भी सरकार की मंशा नहीं लग रही कि स्कूलों को खोलें, क्योंकि पहले 24 मार्च से 31 मार्च तक की छुट्टियां घोषित की गई ,उसके बाद 4 अप्रैल तक की घोषित की गई, और आगे भी सरकार की मंशा क्या है यह स्पष्ट रूप से नजर नहीं आ रहा है, एक तरह से देखा जाए तो सरकार भी शायद यही चाहती है कि आजकल के बच्चे ज्यादा न पढ़े और न ही, ज्यादा समझदार बने क्योंकि पढ़े लिखे और समझदार लोगो को (नागरिकों) बच्चों को समझाना बहुत मुश्किल होता है, और अनपढ़ और गवार लोगों को वोट बैंक के हिसाब से बहुत अच्छी तरह और बहुत जल्द वोट डालने के लिए अपनी पार्टी के लिए मनाया और समझाया जा जाता है, प्राइवेट स्कूल संचालकों का यह भी कहना है कि सरकारी स्कूलों में यदि देखा जाए तो बच्चों की छात्र संख्या नगण्य के बराबर है, किंतु वहां पर बैठे हुए अध्यापक और अध्यापिकाओं की सैलरी लाखों में होती है, चाहे स्कूल की छुट्टी हो या लॉकडाउन हो, उन्हें सैलरी बराबर उनके घर बैठे मिल जाती है ,किंतु विडंबना यह है, कि इस देश के प्राइवेट स्कूल संचालक जो लगभग 80 परसेंट से भी अधिक बच्चों को अच्छी शिक्षा देते हैं ,उन्हें होनहार बनाते हैं और सरकार से कोई आर्थिक सहायता दी नहीं लेते हैं, उसके उपरांत भी सारी खामियां सारा कोरोनावायरस ,सारी गलतियां सारी कमियां सारी गाइडलाइंस केवल उन्हीं के ऊपर क्यों लागू होती है, ऐसा क्यों?
प्राइवेट स्कूल संचालकों का यह भी कहना था कि अगर सरकार ऐसे ही करती रही तो पहले तो वह शांतिप्रिय ढंग से आंदोलन करेंगे, और फिर भी उनके साथ अन्याय होता है और सरकार किसी ना किसी बहाने पर स्कूल खोलने की परमिशन नहीं देती है तो वह सभी उग्र आंदोलन के लिए बादी होंगे जिसकी जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ वर्तमान सरकार की होगी अंततः उन्होंने यह भी निवेदन किया है सरकार से कि वह सभी देश के बच्चों के भविष्य और प्राइवेट स्कूल संचालकों के घर परिवार को देखते हुए कोई उचित और अहम कदम उठाए, जिससे उनके घर पर भी चूल्हा जल सके, और बच्चों का भविष्य भी सवर सके।।।